Friday, October 10, 2014

कारक

वाक्ये क्रियायाः साक्षात् अन्वयः येन पदेन सह भवति तत् पदं कारकं भवति।
वाक्य में जिस पद के द्वारा क्रिया से सीधा अन्वय (logical connection of cause and effect) हो, वह पद कारक होता है।

कारकाणाम् अर्थं प्रकटयितुं येषां प्रत्ययानां संयोजनं शब्दैः सह भवति ते (प्रत्ययाः) कारक-विभाक्तयः भवन्ति।
कारकों का अर्थ प्रकट करने वाले जिन प्रत्ययों का शब्दों के साथ संयोजन होता है, उन प्रत्ययों को कारक-विभक्तियाँ कहते हैं।

(साभार : रा. शै. अनु. प्र. प.)
सरल शब्दों में :-
क्रिया से सादृश्यता दिखाने वाले पद कारक कहलाते हैं।
जो पद कारक है, उस पद में शब्द के साथ प्रत्यय जोड़कर कारक का अर्थ प्रकट किया जाता है, जिसे विभक्ति कहते हैं।
जैसे : "बाणेन" कारक है, इस पद में "एन" प्रत्यय कारक का प्रकार (अर्थ) प्रकट कर रहा है।
कुल छः अर्थों में कारक अपने आपको प्रकट कर सकता है :-
१. कर्ता (ने)
२. कर्म (को)
३. करणम् (से, के साथ = साधन)
४. सम्प्रदानम् (को, के लिए = अर्थ, प्रयोजन)
५. अपादानम् (से, परे = स्त्रोत, अलिप्त कारण)
६. अधिकरणम् (में, पर = स्थिति)

ध्यान दें, षष्ठी विभक्ति सम्बन्ध को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होती है, लेकिन इसका क्रिया से सीधा अन्वय न होने के कारण यह कारक नहीं है।
इसी प्रकार, अष्टमी विभक्ति में सम्बोधन भी कारक नहीं है।
सम्बन्धः सम्बोधनं च कारकं न भवति।


एवमेव नृप-देव-बालक-पितामह-पण्डित-इत्यादीनाम् अकारान्त-पुँल्लिङ्ग-शब्दानां रूपाणि भवन्ति।

एवमेव फल-पुस्तक-नगर-मित्र-पुष्प-उद्दान-इत्यादीनाम् अकारान्त नपुंसकलिङ्ग-शब्दानां रूपाणि भवन्ति।

एवमेव लता-बालिका-रमा-कलिका-इत्यादीनाम् आकारान्त-स्त्रीलिङ्ग-शब्दानां रूपाणि भवन्ति।




एवमेव गति-स्थिति-भक्ति-शक्ति-प्रकृति-प्रीति-कृति-इत्यादीनाम् इकारान्त-स्त्रीलिङ्ग-शब्दानां रूपाणि भवन्ति।

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