यह चिठ्ठा उन भद्र जनों के लिए है जो हिन्दी भली प्रकार से जानते-समझते हैं और अब संस्कृत सीखना चाहते हैं !
सबसे पहले मैं उन लोगों के प्रारब्ध को प्रणाम करना चाहता हूँ , क्यूँकि बड़े सौभाग्यशाली हैं वो लोग जिन का मन संस्कृत नानी का सान्निध्य पाने को व्याकुल होता है !
आप सभी पाठकों को मेरा दण्डवत प्रणाम __/\__
Saturday, December 1, 2012
श्री गणेश
ऊँ श्री विघ्रेश्वराय नम: या ऊँ गं गणपतये नम:। वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभं। निर्विघ्रं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।
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