संस्कृत के बारे में दो बातें जान लेना बहुत आवश्यक है।
१. संस्कृत उच्चारण की भाषा है, इसका वास्तविक नाम वाक् है।
संस्कृत लेखन तो बहुत अर्वाचीन और समकालीन परिदृश्य है। वैसे तो सभी भाषाएँ उच्चारण के लिए ही होती हैं, लेकिन संस्कृत में लेखन का उद्देश्य तो उच्चारण को लिखित रूप में संग्रहित करना मात्र है ताकि उच्चारण में त्रुटि न हो।
उच्चारण और मौखिक वादन पर केन्द्रित होने के कारण ही भारतीय शिक्षा परम्परा में सूत्र बनाए गए। थोड़े शब्दों में बहुत ज्यादा कह देना, अर्थात सूत्रबद्ध कर देना ताकि कण्ठस्थ करने में आसानी रहे !
संस्कृत उच्चारण प्रधान है, इसका सीधा स्पष्ट प्रमाण है "शब्द" जो स्वयं ध्वनि-सूचक है.
शब्द का तात्पर्य alphabet नहीं होता. शब्द एक प्रकार की ध्वनि को कहते हैं जो आघात से उत्पन्न होती है. (शास्त्रीय दृष्टि से इसे "आहत नाद" कहते हैं)।
शब्द-भेदी बाण के बारे में तो आपने सुना ही होगा ....
२. संस्कृत धातु-प्रधान भाषा है।
वाक् किस प्रकार से धातु प्रधान है, उसे समझने से पहले हमें जानना होगा कि कि धातु क्या है ? धातु को जानने से पहले धर्म को जानना पड़ेगा।
धर्म = सत्ता (existence) को बनाए रखने के लिए जिसे अनिवार्य रूप से धारण किया हुआ है, वह धर्म है.
जैसे "ऊष्णता"fire का धर्म है. यदि ऊष्णता ही समाप्त हो जाए तो fire भी नहीं रह सकेगी.
इसी तरह "तरलता" पानी का धर्म है. यदि तरलता समाप्त हो गई, तो वो पानी न रह पाएगा, कुछ और (वाष्प, बर्फ आदि) बन जाएगा.
जैसे जीवित रहने का तरीका है सांस लेना, वैसे ही सत्तामान रहने का तरीका है धर्म का निर्वाह करना !
अब हम धातु पर आते हैं।
धातु = वह मूल तत्त्व जिसमें रूप धारण करने की क्षमता है, वह धातु है ।
प्रत्येक धातु एक विशिष्ट धर्म को इन्गित करती है। There is one-to-one correspondence between धातु and धर्म।
धातु के विभिन्न रूप हो सकते हैं, लेकिन वे सभी रूप उसी एक धर्म को धारण किए होते हैं.
उदाहरण के लिए पच् धातु को देखिए।
पच् धातु "पकाना" धर्म को इन्गित करती है. लेकिन इसी के भिन्न-भिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे :- पचति, पाचक, पक्वः आदि। ये सभी केवल रूप में भिन्न हैं, किन्तु सब के सब "पकाना" धर्म को ही धारण किए हुए हैं।
वाक् में जो भी शब्द हैं, वे सब रूढ़ी अथवा योगरूढ़ी हैं.
जो शब्द केवल धातु से बने हैं, वे रूढ़ी शब्द कहलाते हैं। एक से अधिक रूढ़ी शब्दों के मेल से (योग से) बने शब्दों को योगरूढ़ी शब्द कहते हैं।
इस प्रकार वाक् के हर शब्द का मूलभूत शब्द धातु ही है। इसी कारण वाक् को धातु-प्रधान भाषा कहा जाता है।
१. संस्कृत उच्चारण की भाषा है, इसका वास्तविक नाम वाक् है।
संस्कृत लेखन तो बहुत अर्वाचीन और समकालीन परिदृश्य है। वैसे तो सभी भाषाएँ उच्चारण के लिए ही होती हैं, लेकिन संस्कृत में लेखन का उद्देश्य तो उच्चारण को लिखित रूप में संग्रहित करना मात्र है ताकि उच्चारण में त्रुटि न हो।
उच्चारण और मौखिक वादन पर केन्द्रित होने के कारण ही भारतीय शिक्षा परम्परा में सूत्र बनाए गए। थोड़े शब्दों में बहुत ज्यादा कह देना, अर्थात सूत्रबद्ध कर देना ताकि कण्ठस्थ करने में आसानी रहे !
संस्कृत उच्चारण प्रधान है, इसका सीधा स्पष्ट प्रमाण है "शब्द" जो स्वयं ध्वनि-सूचक है.
शब्द का तात्पर्य alphabet नहीं होता. शब्द एक प्रकार की ध्वनि को कहते हैं जो आघात से उत्पन्न होती है. (शास्त्रीय दृष्टि से इसे "आहत नाद" कहते हैं)।
शब्द-भेदी बाण के बारे में तो आपने सुना ही होगा ....
२. संस्कृत धातु-प्रधान भाषा है।
वाक् किस प्रकार से धातु प्रधान है, उसे समझने से पहले हमें जानना होगा कि कि धातु क्या है ? धातु को जानने से पहले धर्म को जानना पड़ेगा।
धर्म = सत्ता (existence) को बनाए रखने के लिए जिसे अनिवार्य रूप से धारण किया हुआ है, वह धर्म है.
जैसे "ऊष्णता"fire का धर्म है. यदि ऊष्णता ही समाप्त हो जाए तो fire भी नहीं रह सकेगी.
इसी तरह "तरलता" पानी का धर्म है. यदि तरलता समाप्त हो गई, तो वो पानी न रह पाएगा, कुछ और (वाष्प, बर्फ आदि) बन जाएगा.
जैसे जीवित रहने का तरीका है सांस लेना, वैसे ही सत्तामान रहने का तरीका है धर्म का निर्वाह करना !
अब हम धातु पर आते हैं।
धातु = वह मूल तत्त्व जिसमें रूप धारण करने की क्षमता है, वह धातु है ।
प्रत्येक धातु एक विशिष्ट धर्म को इन्गित करती है। There is one-to-one correspondence between धातु and धर्म।
धातु के विभिन्न रूप हो सकते हैं, लेकिन वे सभी रूप उसी एक धर्म को धारण किए होते हैं.
उदाहरण के लिए पच् धातु को देखिए।
पच् धातु "पकाना" धर्म को इन्गित करती है. लेकिन इसी के भिन्न-भिन्न रूप हो सकते हैं, जैसे :- पचति, पाचक, पक्वः आदि। ये सभी केवल रूप में भिन्न हैं, किन्तु सब के सब "पकाना" धर्म को ही धारण किए हुए हैं।
वाक् में जो भी शब्द हैं, वे सब रूढ़ी अथवा योगरूढ़ी हैं.
जो शब्द केवल धातु से बने हैं, वे रूढ़ी शब्द कहलाते हैं। एक से अधिक रूढ़ी शब्दों के मेल से (योग से) बने शब्दों को योगरूढ़ी शब्द कहते हैं।
इस प्रकार वाक् के हर शब्द का मूलभूत शब्द धातु ही है। इसी कारण वाक् को धातु-प्रधान भाषा कहा जाता है।
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