Saturday, October 4, 2014

वाक् का स्वभाव


ये बहुत ही गौरव की बात है कि अनेकानेक भारतवासी संस्कृत पढ़ने लगे हैं, जिस भी साधन से सम्भव हो, वाक् को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
वाक् का अभ्यास करने से पहले उसके मूल स्वभाव को जान लेना अति आवश्यक है।

पिछले लेख में हम जान चुके हैं कि वह मूल तत्त्व जिसमें रूप धारण करने की क्षमता है, वह धातु है।
और यह भी जान चुके हैं कि एक धातु एक विशिष्ट धर्म को इन्गित करती है।
इसलिए जो वस्तु जैसा धर्म धारण करेगी, उसके लिए वैसी ही धातु से निर्मित शब्द का प्रयोग किया जाएगा
जैसे पुष् धातु का धर्म है "प्रकट करना, बिखेरना"। चूंकि flower सुगन्ध प्रकट करते हैं, बिखेरते हैं, इसलिए flower के लिए संस्कृत शब्द पुष्प है।

अब एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात जो समझने की है वो यह है कि एक ही वस्तु एक से ज्यादा धर्मों को धारण कर सकती है. इसलिए एक ही वस्तु के लिए उसके भिन्न धर्मों को प्रकट करते हुए भिन्न नाम हो सकते हैं। जैसे तैरने के कारण जिसको तरु कहा जाता है, उसे ही पैरों से (जड़ों से) पीने के कारण पादप भी कहा जाता है।
इसलिए तरु और पादप पर्यायवाची शब्द नहीं हैं, भले ही ये दोनों धर्म एक ही वस्तु (Tree) ने धारण कर रखे हों। और वाक् में तो कोई भी शब्द किसी दुसरे शब्द का पर्यायवाची नहीं होता, क्युंकि प्रत्येक धातु एक विशिष्ट धर्म को इन्गित करती है

Multiplexing in वाक्
ख् = जो ग्रहण करनेके बाद भी न भरे, तृप्त न हो।
ये मूल धातु है जिसका धर्म है "ग्रहण करने के बाद भी न भरना, तृप्त न होना"।

Fire अनेकानेक लकड़ियाँ ग्रहण करने पर भी तृप्त नहीं होती।
Space भी अनेकानेक पिण्ड, नक्षत्र को ग्रहण किए हुए है.. उसमें और भी असंख्य पिण्ड समा सकते हैं, फिर भी वो भरा नहीं जा सकता
Senses (इन्द्रियाँ) अपने विषयों का सेवन करने के उपरांत भी अतृप्त ही रहती हैं। जीह्वा नित्य ही स्वाद को ग्रहण करती है, लेकिन कभी नहीं थकती।

इस प्रकार हम देखते हैं कि Fire, Space & senses - ये तीनों ही इस धर्म को धारण करते हैं!
इसलिए  Fire का एक नाम खम् है, Space का भी एक नाम खम् है और Senses का एक नाम भी खम् है :)

अब देखिए birds को खग कहते हैं ! ख् में गमन करने के कारण इनको खग कहा जाता है !
इसी अन्वय को आगे बढ़ाते हुए,
जलने के लिए जो लकड़ियाँ हैं, वो भी खगाः हैं !
इन्द्रियों (senses) के विषय (स्वाद, रूप, स्पर्श, गन्ध आदि) भी खगाः हैं !

इस प्रकार एक ही शब्द अनेक वस्तुओं का वाचक हो सकता है और ऐसा इसलिए सम्भव है क्युंकि शब्द (धातु) का सायुज्य उस धर्म से है जिसे इन वस्तुओं ने समान रूप से धारण कर रखा है.

Metal को संस्कृत में धातु कहते हैं क्युंकि metal भी एक ऐसा मूल तत्त्व है जो रूप धारण करने की क्षमता रखता है। इसलिए metal भी धातु है और धातु (व्याकरण वाला) भी धातु है :)

इसी प्रकार देश शब्द का उदाहरण इस चित्र में देखें :-
देश  = जो एकमात्र अद्वितीय बल द्वारा सञ्चालित हो

2 comments:

  1. आपकी प्रतिक्रिया मुस्कान के रूप में देखकर मुझे लगता है कि मेरा लेख सार्थक हुआ :)
    धन्यवाद।

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  2. Pranam pranam pranam gyan amar krega

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