व्यञ्जन को अपने आप में उच्चारित नहीं किया जा सकता। इस अक्षमता को हलन्त के द्वारा दिखाया जाता है!
यथा : क् , ख् , च् आदि।
व्यंजन को उच्चारित करने के लिए स्वर का प्रयोग किया जाता है। यथा :-
क , ख , च आदि।
कप् = cup (end sound of the consonant is clipped)
कप = cupअ (end sound of consonant is followed by अ sound, elongated)
नर = न् + अ + र् + अ
वाक् = व् + आ + क्
सबसे पहले हम वर्णमाला का शास्त्रीय आधार समझते हैं कि क् के बाद ख् ही क्यूँ आता है ? क् वर्ग के बाद च् वर्ग ही क्यूँ आता है ?
संस्कृत का अर्थ है सम्यक् कृति, सुव्यवस्थित, संस्कारित! इसकी वर्णमाला भी सुव्यवस्थित है। आप क् वर्ग में क् , ख् , ग् , और घ् को जोर से बोलकर देखिये, आपकी जीह्वा मुख में एक ही स्थान पर टकराएगी! अब तक आप जीह्वा से उच्चारण कर रहे थे, अब आप उसी स्थान (कण्ठ) पर नाक के द्वारा उच्चारण कीजिए - यही ङ् का उच्चारण है।
इन सबका उद्गम कण्ठ से है, इसलिए क् वर्ग को कण्ठ्य कहते हैं।
इसी प्रकार च् वर्ग का उद्गम तालू से होने के कारण उन व्यञ्जनों को तालव्य कहा गया है।
ट् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम मूर्धा होने से उन्हें मूर्धन्य कहा जाता है।
त् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम दन्त होने से उन्हें दन्त्य कहा जाता है।
प् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम ओष्ठ (होठों से) होने से उन्हें ओष्ठ्य कहा जाता है।
चित्र में जो व्यञ्जन अन्त में shaded (छायांकित) हैं, वे अनुनासिक कहलाते हैं! इनका उच्चारण जीह्वा की बजाए नासिका से होता है, लेकिन उच्चारण का स्थान कण्ठ, तालू, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ होने के कारण ये क्रमशः ङ् , ञ् , ण् , न् , म् भिन्न भिन्न व्यञ्जन हैं।
म् अनुस्वार कब बन जाता है ?
अहम् के अगले शब्द में यदि स्वर मिल जाए, तो बहुत बढ़िया - अन्तिम म् और स्वर मिलकर पूर्ण म होकर एक संयुक्त शब्द बन जाता है, यथा :
अहम् अनामिका = अहमनामिका।
यदि अन्तिम म् से अगला वर्ण स्वर नहीं है तो अहं लिखा जाता है और उच्चारण अगले व्यञ्जन के अनुरूप होता है, यथा :
अहं तारा।
(इस बिन्दी को अनुस्वार कहते हैं, केवल म् ही एकमात्र व्यञ्जन है जो अनुस्वार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है)
और यदि अन्त में अहम् आए, तो अहम् ही लिखा जाता है. यथा :
सोऽहम्।
संस्कृत वाक् है. बोलने की भाषा है। इसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है इसलिए संस्कृत अध्ययन में phonetics अलग से सीखने नहीं पढ़ते और चाहे दक्षिण भारतीय बोले चाहे उत्तर भारतीय, चाहे पूर्वी भारतीय बोले चाहे पश्चिम भारतीय, चाहे अमरीकी बोले चाहे रूसी बोले, सबका उच्चारण एक प्रकार ही होता है।
संस्कृत प्रवाह की भाषा है। आप जब बोलेंगे तो छलांगे मारते हुए एक शब्द से दुसरे शब्द पर नहीं जाएंगे, बल्कि बहते हुए जाएंगे, इसलिए अनुस्वार का उच्चारण उस से अगला व्यञ्जन निश्चित करता है।
अनुस्वार के उच्चारण का विधान क्या है ?
अनुस्वार का उच्चारण कैसे करना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके बाद कौनसा व्यञ्जन है!
अहं के बाद यदि व्यञ्जन के किसी वर्ग (क्, च् , ट् , त् , प् ) का वर्ण आए, तो अहं का अनुस्वार (बिन्दी) अगले व्यञ्जन के वर्ग के अनुनासिक का रूप ले लेता होता है। आप जब इस तरह बोलेंगे तो प्रवाह निर्बाध होगा, यथा:-
(निम्नलिखित वाक्यों में अहं लिखेंगे क्यूंकि अगला वर्ण स्वर नहीं है, किन्तु इस अनुस्वार का उच्चारण हर बार भिन्न कैसे होगा - ये हम नीचे देखेंगे)
अहं कान्ता में अनुस्वार का उच्चारण ङ् है : अहङ्कान्ता !
अहं चन्द्रशेखरः में अनुस्वार का उच्चारण ञ् है : अहञ्चन्द्रशेखरः !
अहं डमरूः में अनुस्वार का उच्चारण ण् है : अहण्डमरूः !
अहं तारा में अनुस्वार का उच्चारण न् है : अहन्तारा !
अहं प्रतीकः में अनुस्वार का उच्चारण अहम्प्रतीकः !
यदि अनुस्वार के बाद य् , र् , ल् , व् , श् , ष् , स् , ह् आए तो उच्चारण म् ही रहेगा, यथा :-
अहं ललितः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : अहम्ललितः !
अहं शशिधरः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : अहम्शशिधरः !
एक शब्द के अन्दर यदि अनुस्वार के बाद किसी वर्ग का व्यञ्जन आए तो वह (अनुस्वार) उस वर्ग के अनुनासिक के रूप में प्रयुक्त होता है :-
शङ्कर !
गङ्गा !
चञ्चल !
व्यञ्जन !
दण्ड !
कण्ठ !
हेमन्त !
कम्पन !
विलम्ब !
एक शब्द के अन्दर यदि अनुस्वार के बाद य् , र् , ल् , व् , श् , ष् , स् , ह् आएं तो उच्चारण म् की तरह होगा,
यथा :-
नरसिंहम् में अनुस्वार का उच्चारण म् है : नरसिम्हम् !
संस्कृतम् में अनुस्वार का उच्चारण म् है : सम्स्कृतम् !
वंशः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : वम्शः !
संवत्सरः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : सम्वत्सरः !
यथा : क् , ख् , च् आदि।
व्यंजन को उच्चारित करने के लिए स्वर का प्रयोग किया जाता है। यथा :-
क , ख , च आदि।
कप् = cup (end sound of the consonant is clipped)
कप = cupअ (end sound of consonant is followed by अ sound, elongated)
नर = न् + अ + र् + अ
वाक् = व् + आ + क्
सबसे पहले हम वर्णमाला का शास्त्रीय आधार समझते हैं कि क् के बाद ख् ही क्यूँ आता है ? क् वर्ग के बाद च् वर्ग ही क्यूँ आता है ?
संस्कृत का अर्थ है सम्यक् कृति, सुव्यवस्थित, संस्कारित! इसकी वर्णमाला भी सुव्यवस्थित है। आप क् वर्ग में क् , ख् , ग् , और घ् को जोर से बोलकर देखिये, आपकी जीह्वा मुख में एक ही स्थान पर टकराएगी! अब तक आप जीह्वा से उच्चारण कर रहे थे, अब आप उसी स्थान (कण्ठ) पर नाक के द्वारा उच्चारण कीजिए - यही ङ् का उच्चारण है।
इन सबका उद्गम कण्ठ से है, इसलिए क् वर्ग को कण्ठ्य कहते हैं।
इसी प्रकार च् वर्ग का उद्गम तालू से होने के कारण उन व्यञ्जनों को तालव्य कहा गया है।
ट् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम मूर्धा होने से उन्हें मूर्धन्य कहा जाता है।
त् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम दन्त होने से उन्हें दन्त्य कहा जाता है।
प् वर्ग के व्यञ्जनों का उद्गम ओष्ठ (होठों से) होने से उन्हें ओष्ठ्य कहा जाता है।
चित्र में जो व्यञ्जन अन्त में shaded (छायांकित) हैं, वे अनुनासिक कहलाते हैं! इनका उच्चारण जीह्वा की बजाए नासिका से होता है, लेकिन उच्चारण का स्थान कण्ठ, तालू, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ होने के कारण ये क्रमशः ङ् , ञ् , ण् , न् , म् भिन्न भिन्न व्यञ्जन हैं।
म् अनुस्वार कब बन जाता है ?
अहम् के अगले शब्द में यदि स्वर मिल जाए, तो बहुत बढ़िया - अन्तिम म् और स्वर मिलकर पूर्ण म होकर एक संयुक्त शब्द बन जाता है, यथा :
अहम् अनामिका = अहमनामिका।
यदि अन्तिम म् से अगला वर्ण स्वर नहीं है तो अहं लिखा जाता है और उच्चारण अगले व्यञ्जन के अनुरूप होता है, यथा :
अहं तारा।
(इस बिन्दी को अनुस्वार कहते हैं, केवल म् ही एकमात्र व्यञ्जन है जो अनुस्वार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है)
और यदि अन्त में अहम् आए, तो अहम् ही लिखा जाता है. यथा :
सोऽहम्।
संस्कृत वाक् है. बोलने की भाषा है। इसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है इसलिए संस्कृत अध्ययन में phonetics अलग से सीखने नहीं पढ़ते और चाहे दक्षिण भारतीय बोले चाहे उत्तर भारतीय, चाहे पूर्वी भारतीय बोले चाहे पश्चिम भारतीय, चाहे अमरीकी बोले चाहे रूसी बोले, सबका उच्चारण एक प्रकार ही होता है।
संस्कृत प्रवाह की भाषा है। आप जब बोलेंगे तो छलांगे मारते हुए एक शब्द से दुसरे शब्द पर नहीं जाएंगे, बल्कि बहते हुए जाएंगे, इसलिए अनुस्वार का उच्चारण उस से अगला व्यञ्जन निश्चित करता है।
अनुस्वार के उच्चारण का विधान क्या है ?
अनुस्वार का उच्चारण कैसे करना है ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके बाद कौनसा व्यञ्जन है!
अहं के बाद यदि व्यञ्जन के किसी वर्ग (क्, च् , ट् , त् , प् ) का वर्ण आए, तो अहं का अनुस्वार (बिन्दी) अगले व्यञ्जन के वर्ग के अनुनासिक का रूप ले लेता होता है। आप जब इस तरह बोलेंगे तो प्रवाह निर्बाध होगा, यथा:-
(निम्नलिखित वाक्यों में अहं लिखेंगे क्यूंकि अगला वर्ण स्वर नहीं है, किन्तु इस अनुस्वार का उच्चारण हर बार भिन्न कैसे होगा - ये हम नीचे देखेंगे)
अहं कान्ता में अनुस्वार का उच्चारण ङ् है : अहङ्कान्ता !
अहं चन्द्रशेखरः में अनुस्वार का उच्चारण ञ् है : अहञ्चन्द्रशेखरः !
अहं डमरूः में अनुस्वार का उच्चारण ण् है : अहण्डमरूः !
अहं तारा में अनुस्वार का उच्चारण न् है : अहन्तारा !
अहं प्रतीकः में अनुस्वार का उच्चारण अहम्प्रतीकः !
यदि अनुस्वार के बाद य् , र् , ल् , व् , श् , ष् , स् , ह् आए तो उच्चारण म् ही रहेगा, यथा :-
अहं ललितः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : अहम्ललितः !
अहं शशिधरः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : अहम्शशिधरः !
एक शब्द के अन्दर यदि अनुस्वार के बाद किसी वर्ग का व्यञ्जन आए तो वह (अनुस्वार) उस वर्ग के अनुनासिक के रूप में प्रयुक्त होता है :-
शङ्कर !
गङ्गा !
चञ्चल !
व्यञ्जन !
दण्ड !
कण्ठ !
हेमन्त !
कम्पन !
विलम्ब !
एक शब्द के अन्दर यदि अनुस्वार के बाद य् , र् , ल् , व् , श् , ष् , स् , ह् आएं तो उच्चारण म् की तरह होगा,
यथा :-
नरसिंहम् में अनुस्वार का उच्चारण म् है : नरसिम्हम् !
संस्कृतम् में अनुस्वार का उच्चारण म् है : सम्स्कृतम् !
वंशः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : वम्शः !
संवत्सरः में अनुस्वार का उच्चारण म् है : सम्वत्सरः !
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